ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
May 12, 2023, 22:35 IST
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घाव जो दिल में छुपे चलकर ज़ुबां तक आ गए ।
बेटियों के ज़ज़्ब अब सोचो कहां तक आ गए ।
मुद्दतों से कैद थे जो हरकतों के सिलसिले ,
वहशियों के कारनामे अब उफां तक आ गए ।
ना मुरादों ने नहीं फ़रियाद बच्चों की सुनी ,
पहलवानों के तगाफुल इम्तिहां तक आ गए ।
जीतकर मैडल दिया तो हिंद की बेटी कहा ,
अब वही नेता मेरे सुदो जियां तक आ गए ।
राजनैतिक खेल में अब फस गए हैं केसरी ,
और कुछ नेताओं के उल्टे बयां तक आ गए ।
आग में घी डालने को जातियां आने लगीं ,
खाप के मैदान में अब कारवां तक आ गए ।
कौन है इसका रचियता दोष किसके सिर मढ़े ,
कुश्तियों के फलसफे सारे जहां तक आ गए ।
फावड़ा "हलधर" पिघल होने तलवार अब,
शब्द मेरे युद्ध ये लड़ने यहां तक आ गए ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून