ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

 | 
pic

भरोसा मत करो इन मज़हबी नेता दलालों पर ।

ज़रूरत ध्यान देने की उभरते कुछ सवालों पर ।

लगाने आग भारत में दिखेंगे घूमते अक्सर ,

लपेटे तेल का कपड़ा गरीबी की मशालों पर ।

धुँआ बादल नहीं होता न वो बरसात करता ,

उठे क्यों प्रश्न संसद में अदानी के हवालों पर ।

पुराना शौक आदम का नशा या मयकशी करना ,

उठाते उंगलियां क्यों लोग व्यापारी कलालों पर ।

जिन्होंने पांच दशकों तक हमें कच्चा चवाया है ,

चुनावी दौर ये भारी सियासी उन करालों पर ।

विदेशी नास्तों का मुल्क में अब बोलबाला है ,

न जाने क्यों घटा विश्वास है देशी मसालों पर ।

हमारी मुफलिसी पर लोग हँसते मुस्कुराते थे ,

वही "हलधर" दुखी हैं आज अपने ही ख़यालों पर ।

 - जसवीर सिंह हलधर , देहरादून