ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

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हकीकत मानता जिसको वही सपना निकलता है ।

जिसे भी गैर माना है वही अपना निकलता है ।

बुलाता भूख में भरपेट भोजन के मुतासिर वो ,

नहीं रोटी निकलती है वहां चखना निकलता है ।

भले ही मील सौ सौ दौड़ने का ठोकते दावा ,

बुढ़ापे में कभी घुटना कभी रखना निकलता है ।

उघाड़ी पूत ने इज्जत उछाली बाप की पगड़ी ,

मगर माँ की दुआओं में उसे ढकना निकलता है ।

जिसे हम मानते साहित्य देगा रोशनी जग को ,

अगर पाठक नहीं होंगे तो वो छपना निकलता है ।

जिसे माना बड़ा शाइर वही झूठा बड़ा निकला ,

करेगा बात दिल्ली की पता पटना निकलता है ।

अभी भी सोच ले "हलधर" कहानी या हकीकत है ,

सभी का एक जैसा मंच पर रटना निकलता है ।

 - जसवीर सिंह हलधर , देहरादून