ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
Apr 11, 2023, 23:29 IST
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हकीकत मानता जिसको वही सपना निकलता है ।
जिसे भी गैर माना है वही अपना निकलता है ।
बुलाता भूख में भरपेट भोजन के मुतासिर वो ,
नहीं रोटी निकलती है वहां चखना निकलता है ।
भले ही मील सौ सौ दौड़ने का ठोकते दावा ,
बुढ़ापे में कभी घुटना कभी रखना निकलता है ।
उघाड़ी पूत ने इज्जत उछाली बाप की पगड़ी ,
मगर माँ की दुआओं में उसे ढकना निकलता है ।
जिसे हम मानते साहित्य देगा रोशनी जग को ,
अगर पाठक नहीं होंगे तो वो छपना निकलता है ।
जिसे माना बड़ा शाइर वही झूठा बड़ा निकला ,
करेगा बात दिल्ली की पता पटना निकलता है ।
अभी भी सोच ले "हलधर" कहानी या हकीकत है ,
सभी का एक जैसा मंच पर रटना निकलता है ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून