ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

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पूस की हो सर्दियां या गर्मियां बैसाख में ।

कृष्ण हो या शुक्ल हो तैयार हैं हर पाख में ।

कारगिल ,डुकलाम हो या जंग हो लद्दाख में ।

शत्रु यदि आगे बढ़ा तो जा मिलेगा राख में ।

हम उसी बाली के वंशज और अंगद भ्रात हैं ,

माह छः रावण रखा जिसने दबाकर काख में ।

तीन कपि बापू तुम्हारे राह भटके आजकल ,

चीन में कुछ पाक में बट्टा लगाते साख में ।

फौज के आगे अड़े यदि चीन हो पाक हो ,

भारती के शेर सौ भूसा भरेंगे लाख में ।

टैंक बंदूकें हमारी शान हैं शृंगार है ,

युद्ध के आलेख अंकित तोप के सूराख में ।

पाक को चेतावनी है चीन को ललकार है ,

हर तरह के शस्त्र चालान हैं हमारी जाख में ।

खास काली अस्त्र "हलधर" फ़ौज का अभिमान है ,

खोज मत अंगूर अब बारूद पोषित दाख में ।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून