ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

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जुदाई दिख रही अंगडाइयों में वो नहीं समझा ।

जवानी झुक रही तन्हाइयों में वो नहीं समझा ।

वबा की मार का देखा बुढ़ापे पर असर इतना ,

जनाज़े दब गये गहराइयों में वो नहीं समझा ।

तमन्ना थी नदी की सिन्धु से रिश्ता बनाने की ,

भटकती जा गिरी वो खाइयों में वो नहीं समझा ।

समापन हो गया सारे रिवाजों का सगाई में ,

उदासी छा गयी शहनाइयों में वो नहीं समझा ।

किये वादे बहुत से शांति औ सौहार्द कायम के ,

तिरंगा घिर गया दंगाइयों में  वो नहीं समझा ।

हमारी भी तमन्ना थी कि "हलधर" को समझ आए ,

पपीहा रो रहा अमराइयों में वो नहीं समझा ।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून