ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
Wed, 22 Feb 2023
| 
जुदाई दिख रही अंगडाइयों में वो नहीं समझा ।
जवानी झुक रही तन्हाइयों में वो नहीं समझा ।
वबा की मार का देखा बुढ़ापे पर असर इतना ,
जनाज़े दब गये गहराइयों में वो नहीं समझा ।
तमन्ना थी नदी की सिन्धु से रिश्ता बनाने की ,
भटकती जा गिरी वो खाइयों में वो नहीं समझा ।
समापन हो गया सारे रिवाजों का सगाई में ,
उदासी छा गयी शहनाइयों में वो नहीं समझा ।
किये वादे बहुत से शांति औ सौहार्द कायम के ,
तिरंगा घिर गया दंगाइयों में वो नहीं समझा ।
हमारी भी तमन्ना थी कि "हलधर" को समझ आए ,
पपीहा रो रहा अमराइयों में वो नहीं समझा ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून