ग़ज़ल हिंदी (विश्व पुस्तक दिवस) - जसवीर सिंह हलधर
Apr 24, 2023, 21:31 IST
| 
पुस्तकों से प्रश्न करती दिख रहीं अलमारियाँ ।
रुग्ण क्यों दिखने लगी हो क्या तुम्हें बीमारियाँ ।
पाठकों का प्रेम क्यों घटने लगा है इन दिनों ,
दोष किसका है कहो कैसे बढ़ीं दुश्वारियाँ ।
रो रहीं कविता ,कहानी क्यों तुम्हारी कोख में ,
फेसबुक की चाल है या वक्त की लाचारियाँ ।
माँग के अनुरूप ही ढलना तुम्हें होगा सखी ,
ई-किताबों में विलय की अब करो तैयारियाँ ।
हम तुम्हारे बिन कबाड़ी भाव में बिकने चलीं ,
लुप्त होती दिख रहीं साहित्य की किलकारियाँ ।
आ गया इंस्टा हमारे ज़ख्म पर मलने नमक ,
और ट्विटर कर रहा है नित नई मक्कारियाँ ।
कौन है इसका रचियता दोष किसके सिर मढ़ें ,
पुस्तकों के साथ "हलधर" क्यों हुई अय्यारियाँ ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून