गज़ल - झरना माथुर

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वो न आये अश्क बहते रहे,

और हम तन्हा सुलगते रहे।

हाल-ए-दिल क्या बताये भला,

बस शमा के संग जलते रहे।

आयतो जैसे रटा है तुझे,

इश्क़ बन के तुम उतरते रहे।

बन गई है ये फिज़ा भी हसीं,

गुल तुम्हें छू के संवरते रहे।

रेत ही है जिंदगी ये सनम,

हाथ से किस्मत फिसलते रहे।

कब मिलेगा ये सकीना मुझे,

हम मदीने से गुजरते रहे।

अक्स "झरना" अब खलिश बन गया,

वक्त के हम दांव चलते रहे।

- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड

सकीना (आराम)   अक्स (चित्र)  खालिश (चुभन)