ग़ज़ल - डॉ उषा झा

 | 
pic

कोई  तूफ़ाँ उठा रहे  होंगे,

लाड़ली को  सता रहे होगें।

फ़ख़्र करते पिता जो बेटी पर,

आँख से  खूँ बहा रहे होगें  ।

लालची तो दहेज के कारण,

कोई दुनियां मिटा रहे होगें ।

बेटियाँ काम करती' दफ्तर में,

आदमी  सटपटा रहे होगें ।

आज वेतन मिला उसे हँसकर,

पास अपने बिठा रहे होंगें ।

देर आफिस में हो गयी घर में,

खूब  तांडव मचा  रहे होंगे ।

हो गयी लाड़ली 'उषा' अफसर,

पलकों पर सब बिठा रहे होंगे।

- डॉ उषा झा रेणु  देहरादून, उत्तराखंड