ग़ज़ल - भूपेंद्र राघव
May 30, 2023, 22:01 IST
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स्लेट पर फिर स्लेटियाँ दिखने लगीं,
फिर चमकती पुतलियाँ दिखने लगीं।
कोख में जो कट रहीं थीं आजतक ,
आँगनों में बेटियाँ दिखने लगीं ।
ढक रही थीं रूढ़ियों की धुंध से ,
आश की वह चोटियाँ दिखने लगीं ।
फिर अमन मन में दिखाई दे रहा ,
फिर चमन में तितलियाँ दिखने लगीं।
जिसने ना देखा कभी अपना गला,
उसको मेरी गलतियाँ दिखने लगीं।
फिर घुसा है भेड़िया कोई यहाँ ,
रास्तों पर तख्तियाँ दिखने लगीं।
बांटने खुशियाँ मुड़ा "राघव" उधर,
ओर जिस भी सिसकियाँ दिखने लगीं
- भूपेंद्र राघव , खुर्जा, उत्तर प्रदेश