ग़ज़ल - भूपेन्द्र राघव

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मूछों   पर  कब  ताव  रखा  है,

बचपन   सा    बर्ताव  रखा  है।

आब  रखा  है,  इन  आँखों  में,

दिल  में  आदर  भाव  रखा  है। 

होठों   पर   मुस्कान   रखी  है,

दाब  दाबकर    घाव  रखा   है। 

वो  मुस्काये   इसके    खातिर,

आंसू    पीना   चाव   रखा   है। 

मन को  तो मन  पढ़  लेता  है,

मन  ही  मन  प्रस्ताव  रखा  है। 

देखो   कब  तक  पूरा   होगा,

पलकों पर जो  ख्वाब रखा है।

मैं  तो   यार   अकेला  आया,

तुमने   लश्कर  लाव  रखा  है।

पंजों पर  भी  हासिल कब वो,

इतना    ऊंचा   भाव  रखा  है। 

सर     टकराता    आते  जाते,

यह  कैसा   मेहराब  रखा   है।

छूता   हूँ   तो  चुभ  जाता  है,

कैसा   खूब   गुलाब  रखा  है ।

जान  गए तो, क्यों  लड़ना  है,

नाव  रखी   है,  नाव  रखा  है। 

- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा , उत्तर प्रदेश