ग़ज़ल - अनिरुद्ध कुमार
Dec 31, 2023, 23:36 IST
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सोंचता हूँ क्या लिखा तकदीर में,
देख सब उलझे हुए जागीर में।
ढ़ूढ़तें है जिंदगी जानें कहाँ,
जख्म पीड़ा या चुभन हर पीर में।
रो रही इंसानियत हो दर बदर,
खोजते हैं हर खुशी तस्वीर में।
राह ढूंढें रास्ता मंजिल कहाँ,
पाँव उलझा देख ना जंजीर में।
हर निगाहें रौशनी पर है लगीं,
वो मजा अब है कहाँ तासीर में।
खो गई पहचान कोई क्या करें,
फायदा हीं कायदा हर बीर में।
अब लहू के रंग भी कुम्हला गये,
प्यार खोजे प्यार 'अनि' हर हीर में।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह'अनि',
धनबाद, झारखंड।