ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

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धार में पतवार अटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !

सिंधु ने ही नाव सटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !

जाल में ऐसे फसे हैं आज तक वो कट न पाया ,

शीश पर तलवार लटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !

काँच जैसे जड़ गए हम  पत्थरों की चौखटों में ,

देह ये सौ बार चटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !

बोझ हम लादे रहे हैं मौन व्रत धारण किए है ,

राज की फोड़ी न मटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !

हम जिसे पूजा किए माना हमारा देवता है ,

बात उसकी आज खटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !

भ्रात हम कहते रहे हैं आज तक जिन ढोंगियों को ,

वो लगाते दाब पटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !

आग सड़कों पर लगाते घूमती हैं कुछ जमातें ,

देश की आवाम भटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !

गम भुलाने के बहाने पी रहा क्यों  रोज" हलधर " ,

रात दारू खूब गटकी हाल दिल का क्या सुनाएँ !

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून