ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Oct 5, 2024, 22:37 IST
| समंदर पार क्यों अपना घरौंदा मानता है ।
नए मुल्कों के बारे में अभी क्या जनता है ।
जमीं लगती नई सी आसमां लगता नया सा ,
नया कुछ भी नहीं है सिर्फ़ ये अज्ञानता है ।
यहां रोता रहा कोई मगर उसको ख़बर क्या ,
दुखी मां बाप के आंसू नहीं पहचानता है ।
अधूरे काम छोड़े जा रहा है इस चमन में ,
वहां बारूद के ढेरों में तंबू तानता है ।
विदेशों में किसी को भी किसी से प्यार है क्या ,
खिजां के पीत पत्तों को बहारें मानता है ।
वहां दोयम बताते हैं ख़री अब्बल नसल को ,
पराए मुल्क में मिलती नहीं सम्मानता है ।
उसे मेरी ग़ज़ल भायी नहीं नाराज़ है वो ,
मेरे मिसरों में भारत भूमि की प्रधानता है ।
मशीनी हो गया है आदमी तन्हा सफ़र में ,
वतन को छोड़ 'हलधर' ख़ाक बाहर छानता है ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून