ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

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चाँद विष को निगलता है बात सच्ची मान लो।

रोज  सूरज  पिघलता है बात सच्ची मान लो ।

आदतें मेरी किसी के प्यार की मुहताज थी ,

वो मुखौटे बदलता है बात सच्ची मान लो ।

इस शहर में आदमी की शक्ल धुंधला आइना,

साफ दिखना सफलता है बात सच्ची मान लो ।

दिल जिसे हर बात में हँसने कि आदत थी कभी ,

आज रोकर बहलता है बात सच्ची मान लो ।

भूख से घायल भिखारी हिंदु मुस्लिम हो गए ,

देख कर दिल दहलता है बात सच्ची मान लो ।

अब हलाला पाप है ये है मुनादी शहर में ,

मौलवी क्यों बिचलता है बात सच्ची मान लो ।

मोमिता जैसा न हो इस बात पर भी ध्यान दो ,

खून "हलधर" उबलता है बात सच्ची मान लो ।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून