ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

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आप भी महसूस करिए इस चुनावी ताप को ।

राजनैतिक खामियों तक ले चलूंगा आपको ।

एक दूजे पर लगाते झूँठ के आरोप ये ,

कौम के दल्ले बताते धुंध उठती भाप को ।

यदि कहीं अल्लड़ जवानी भूल कर जाये यहां ,

ये ख़बर में रेप कहते इश्क के पद चाप को ।

हम जिन्हें चौथा सहारा मानकर चलते रहे ,

आज वो ही खा रहे इस देश के परिमाप को।

आदमी के काम को भी मान तो कुछ दीजिये ,

संत शासक देश का है भूलिए मत बाप को ।

योजनाओं पर करो चर्चा रखो कुछ प्रश्न भी ,

पीढ़ियाँ दिल में रखें तब आपकी इस छाप को ।

कुछ दलों को फौज पर ही शकसुबा होने लगा ,

मर्सिया कहते रहे जो जीत के आलाप को ।

जाट मुल्लों की लड़ाई का सभी संज्ञान लो ,

कौम "हलधर" भूल सकती क्या किये उस पाप को ।।

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून