ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
May 25, 2024, 22:43 IST
| आप भी महसूस करिए इस चुनावी ताप को ।
राजनैतिक खामियों तक ले चलूंगा आपको ।
एक दूजे पर लगाते झूँठ के आरोप ये ,
कौम के दल्ले बताते धुंध उठती भाप को ।
यदि कहीं अल्लड़ जवानी भूल कर जाये यहां ,
ये ख़बर में रेप कहते इश्क के पद चाप को ।
हम जिन्हें चौथा सहारा मानकर चलते रहे ,
आज वो ही खा रहे इस देश के परिमाप को।
आदमी के काम को भी मान तो कुछ दीजिये ,
संत शासक देश का है भूलिए मत बाप को ।
योजनाओं पर करो चर्चा रखो कुछ प्रश्न भी ,
पीढ़ियाँ दिल में रखें तब आपकी इस छाप को ।
कुछ दलों को फौज पर ही शकसुबा होने लगा ,
मर्सिया कहते रहे जो जीत के आलाप को ।
जाट मुल्लों की लड़ाई का सभी संज्ञान लो ,
कौम "हलधर" भूल सकती क्या किये उस पाप को ।।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून