ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Apr 8, 2024, 23:20 IST
| अन्याय है या न्याय लो मर ही गया मुख़्तार,
अपराध का पर्याय लो मर ही गया मुख़्तार।
अखिलेश का चाचा सगा माया का भाई जान,
अब ख़त्म ये अध्याय लो मर ही गया मुख़्तार।
कानून अपनी जेब में रखता था जो कभी,
कैसे मरा असहाय लो मर ही गया मुख़्तार।
आदित्य नाथ नाम की ऐसी नज़र लगी,
समझो सही अभिप्राय लो मर ही गया मुख़्तार।
कुछ राजनैतिक लोग तो रोने लगे मियां,
पर खुश हुआ समुदाय लो मर ही गया मुख़्तार।
अपराध सारे माफ़ आख़िर मौत ने किए
साधन हुए निरूपाय लो मर ही गया मुख़्तार।
दर्ज़ा मसायल भाँप के "हलधर" कही ग़ज़ल,
अब होत क्या पछताय लो मर ही गया मुख़्तार।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून