ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

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छेड़ मत इतिहास को भूगोल भी घिर जाएगा।

मज़हबी तूफान में बूढ़ा शजर गिर जाएगा ।

सांझला चूल्हा हजारों साल से जो जल रहा ,

ये अगर बुझने लगा किस ओर ज़ाकिर जायेगा ।

सिरफिरे उन्माद में व्यवसाय घायल हो रहा ,

बेवजह नुकसान में सतपाल, कादिर जाएगा ।

हम समूचे विश्व को ऐसा सफ़ीना दे रहे ,

बैठ कर इस नाव में सारा जहां तिर जाएगा।

सर जुदा तन से कराना ईश का आदेश क्या ?

व्यर्थ के उन्माद में ये कारवां चिर जाएगा।

अब मदीने की बगल में एक मंदिर बन रहा ,

रोक लेगा क्या वहां पर रोज काफ़िर जाएगा।

बात जो मैंने कही वो सत्य है हर कोण से ,

जुर्म गर नासीर करे तो जेल नासीर जाएगा ।

एक चिंगारी बहुत है घर जलाने के लिए ,

घर जला तो सोच "हलधर" तू कहां फिर जाएगा ।

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून