ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Sep 17, 2023, 22:38 IST
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सर जहां पर था हमारा पैर कर आये हैं हम ।
मुल्क बटवारे में अपने गैर कर आये हैं हम ।
आब झेलम और सतलज का अभी तक लाल है ,
खून की बहती नदी में तैर कर आये हैं हम ।
तीन रंगों में छिपा इतिहास भी भूगोल भी ,
सिंध औ लाहौर से भी बैर कर आये हैं हम ।
हूण हो या आर्य हो हम या मुगल पश्तून हो ,
दासता पिछली सदी में सैर कर आये हैं हम ।
देश बटवारा हुआ पर आम जन को क्या मिला ,
गांव नानक का विदेशी ज़ैर आये हैं हम ।
काश ऐसा पाक में भी कोई शाइर सोचता ,
जीत कर भी युद्ध उनकी ख़ैर कर आये हैं हम ।
चांद मामा है हमारा बात "हलधर " की सुनो ,
चांद पर फहरा तिरंगा दैर कर आये हैं हम ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून