घनाक्षरी - प्रियदर्शिनी पुष्पा

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धर्म का आधार लिए , वेद गीता सार लिए,

विज्ञान विहार नव, करा रही हिंदी है।

द्वैत औ अद्वैत ज्ञान, वर्ण वर्ण में हैं छिपा,

वर्ण का सुरम्य रूप,  दिखा रही हिंदी है।

संस्कृति श्रृंगार कर , भाव में प्रवाह भर,

अशिष्ट को शिष्टता भी, सिखा रही हिंदी है।

सत रज तमस के, मूल अर्थ भेद कर,

भटकों को राह नई, दिखा रही हिंदी है।

- प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर