गीतिका - मधु शुक्ला

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बिना पढ़ी पुस्तक जीवन है ,

पढ़ने में रत रहता मन है।

प्रेम, त्याग, अपनापन, ममता,

सुरभित इनसे जग कानन है।

सत्य, न्याय पथ जो दिखलाता,

आदर पाता वह लेखन है।

तालमेल का सौरभ बिखरा ,

रहे जहॉ॑ प्रेरक ऑ॑गन है।

ज्ञान, लगन,धीरज से मिलता,

कर्मवीर को हर साधन है।

वचन प्रीति, व्यवहार विमलता,

गहे वही होता सज्जन है।

शुचि मन‌‌ ही‌ पाता ईश्वर को,

फिर भी सबको प्यारा तन है।

-- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश .