गीतिका - मधु शुक्ला

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छंद के संसार को कवि गेयता आधार दो,

रस अलंकारों सहित मार्धुता उपहार दो।

मातृभाषा जगमगाये विश्व के आकाश में,

लेखनी द्वारा उसे संस्कार का शृंगार दो।

निज सदन में जब मिले सम्मान उन्नति हो तभी,

हो सके तो मातृभाषा को सदन में प्यार दो।

श्रेष्ठता की जंग में कोई प्रगति करता नहीं,

प्रेम से भाषा जगत को मेल का उपचार दो।

मान हिंदी को मिले उन्नति करे वह रात दिन,

साधको साहित्य के ऐसा उसे संसार दो।

- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश