गीतिका - मधु शुक्ला

 | 
pic

सूर्य सम संसार में तुम हे पथिक चलते रहो,

जिंदगी पाये प्रकृति इस हेतु तुम जलते रहो।

साधना सत्कर्म की फल चाह बिन करना सतत,

ईश के आशीष से मद मोह को दलते रहो।

दूर हो अज्ञान तम गुरु छाँव में ही बैठ कर,

ज्ञान रूपी खाद गहकर हर समय फलते रहो।

जिंदगी की धूप से रक्षा करें माता - पिता,

बैठ कर उनके निकट ममता तले पलते रहो।

पार भव सागर करो पतवार कर उपकार को,

दीन की मुस्कान से मझधार को छलते रहो।

 ----  मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश