गीतिका - मधु शुक्ला
Feb 3, 2024, 22:25 IST
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बंधन दुनियादारी वाले, सपनों का छीनें संसार,
हर मन में लालसा दबी यह,नील गगन में करें बिहार।
मन पंछी स्वीकार न करता, कुरीतियों का फैला जाल,
चाह करे उन्मुक्त गगन में, विचरण की वह बारम्बार।
आजादी का दीवाना जग, सभी जानते हैं यह बात,
बंधन के बदले हम मन को, संस्कारों का दें उपहार।
सफल तभी हो लगन परिश्रम,जब धावक रहता आजाद,
पथ मंजिल का साथ निभाता, नहीं साधना हो बेकार।
प्रगति तभी होती है संभव, कर्ता पाये जब विश्वास,
होता है विवेक जब साथी, सुख देता उन्मुक्त बिहार।
--- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश