गीतिका - मधु शुक्ला

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स्वागत है श्रीमान आपका,नमन करो स्वीकार।

आप हमारे प्रति निज मन में, रखना उच्च विचार।

आशाओं को बल देना प्रिय, करना नहीं निराश,

मौसम को अनुकूल बनाकर, देना जगत सँवार।

काया तुम आतंकवाद की, कर देना प्रिय नष्ट,

गह पायेगी मानवता तब, जीने का आधार।

युद्ध और वर्चस्व कामना, मत पनपाना आप,

प्रेम एकता का हम सबको, दे देना उपहार।

दो हजार चौबीस सुनो जी, शुभता सुचिता संग,

आप हमेशा रहना तब ही, चहकेगा संसार।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश