गीतिका - मधु शुक्ला

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स्वस्थ रहें हम शुद्ध रहे यदि पर्यावरण हमारा,

सेहत वाला ही बन सकता, सच्चा वतन सहारा।

कानन भारत का मन मोहे,जाग्रत हो जब माली,

पवन न जहरीली पनपे तब,सुमन लगे हर प्यारा।

खुशहाली की आस लगाये,जनमानस बैठा है,

रूप पुरातन माँ गंगा का, माँगे जीवन धारा।

प्रेम हमें हो हरियाली से, तो बिगड़ी बन सकती,

रोग मिटें तो फैले जग में, खुशियों का उजियारा।

शुद्ध वायु बिन मानव जीवन,पिये गरल के प्याले,

पता नहीं क्यों मानवता ने, इस दुख को स्वीकारा।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश