गीतिका - मधु शुकला

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उजियारा फैलायें घर-घर,चलो प्यार के दीप जलायें,

प्रेम एकता की खुशबू से,सकल जगत को हम महकायें।

हम रंग भरें नित जी भर के , संबधों में अपनेपन का,

उद्देश्य न भूलें पर्वों का,अपनी संस्कृति को अपनायें।

सहयोगी भावों से सज्जित,रहे आचरण सदा हमारा,

मानवता के रक्षक बन कर,राम,कृष्ण के भक्त कहायें।

धन अर्जन आवश्यक है पर,संबंधों से अधिक न मानो,

कर्म और व्यवहार सभी से, हम रिश्तों को यह समझायें।

प्रीत डोर से बढ़कर जग में, दृढ़ कोई भी डोर न होती,

गीत रचें हम इन भावों के,जनमानस को खूब सुनायें।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश