गीतिका - मधु शुक्ला
Nov 17, 2023, 20:27 IST
| अवसाद से घिरे मन, को शब्द कुछ बचाये,
रहने न दी उदासी, उम्मीद को जगाये।
बैचैन कर गये थे, कुछ कटु वचन हृदय को,
राहत मधुर वचन से, सच्चे सखा दिलाये।
हथियार भी दवा भी, दो रूप शब्द के हैं,
होता विवेक पर यह, सुख, लाभ, हानि पाये।
महिमा बड़ी निराली, है शब्द की जगत में,
अरि मित्र बन गये हैं, अपने हुए पराये।
धन है बड़ा नहीं है, सम्मान से बड़ा पर,
आदर प्रदान कर के, रिश्ते गये निभाये।
हैं शत्रु आदमी के, मद, क्रोध, लोभ, लालच,
इनको तजे तभी मन, हँसता रहे हँसाये।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश .