गीतिका - मधु शुक्ला

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द्वार साँवरे आई तेरे , तज कर मैं संसार,

बाँह थाम लो विनय यही है, जग के पालनहार।

मन दर्पण में तुम्हें निहारूँ, मति प्रभु कर दो शुद्ध,

सिवा आपके दिखे न कोई,कर दो यह उपकार।

मोह,लोभ कोतजकर कान्हा,गाऊँ तेरे गीत,

अपने रंग रंग ले पाये,मम जीवन उजियार।

शरण आपकी आकर होते,भवबंधन से मुक्त,

कई पातकी तार दिए प्रभु,करो हमें भी पार।

हम अभिनेता निर्देशक तुम, क्यों हैं मुझमें दोष,

तेरी मर्जी से ही जग में, होता  है  संचार।

— मधु शुक्ला, सतना ,  मध्यप्रदेश .