गीतिका - मधु शुक्ला

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बच्चों के मुख से निकलीं सब, बातें अच्छीं लगतीं हैं,

बाल सुलभ सुन्दर चेष्टाएं, असर हृदय पर करतीं हैं।

बच्चों  में  भगवान  विराजें, यही  मान्यता  है  प्रचलित,

स्वार्थ, लोभ, छल से उनकीं,राहें कभी न मिलतीं हैं।

समता के पोषक होते अति , बच्चे अपनाते सबको,

प्रीति क्षमा की भाषा केवल, उनकीं आखें पढ़तीं हैं।

जीवन भर यदि बच्चों सा उर, बना रहे तो क्या कहने,

शर्मनाक घटनाएं अक्सर, हम सोचें क्यों घटतीं हैं।

धन का मैल चढ़े जब मन पर , बचपन गायब हो जाता,

मृगतृष्णा कीं लहरें  जीवन, सागर में तब उठतीं हैं।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश