गीतिका - मधु शुक्ला

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सुदामा कृष्ण का रिश्ता नहीं हम भूल पाते हैं,

समंदर प्रीति का शुचितम इसे ज्ञानी बताते हैं।

सभी रिश्ते जगत में ईश निर्धारित किया करते,

मगर हम आप रिश्ता दोस्ती का खुद बनाते हैं।

जगत  में  मित्रता  बंधन  कहाता है बहुत पावन,

न  इसमें  लोग  मन  में  भेद भावों को उगाते हैं।

कपट, छल, द्वेष, ईर्ष्या मित्रता में घर न कर पाते ,

हमेशा  मित्र  ही  निस्वार्थता  हमको  सिखाते  हैं।

मनुजता,  प्रेम,  हमदर्दी,  कई  हैं  नाम  यारी के,

सदा  बंधन  हृदय  के  एकता  के  गीत  गाते हैं।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश