गीतिका - मधु शुक्ला

 | 
pic

राम लगन मोहे लागी सखि, अब कैसे करूँ गुजारा ,

राह  रोक  कर  खड़ा  जमाना, मन घबराये बेचारा।

चौका चूल्हा रास न आये, अरि लगतीं गृह दीवारें,

राम नाम संकीर्तन जब से, पकड़ा है हाथ हमारा।

अनुरागी मन व्याकुल रहता, छवि रघुवर की लखने को,

इसीलिए तो मन आँगन को, हमने  सखि  खूब  बुहारा।

राम नाम  से  उत्तम  दौलत, और  नहीं  कोई  होती,

राम लगन मोहे लागी तब, यह जानी जीवन धारा।

काम क्रोध मद लोभ त्याग कर,भक्ति मार्ग ढूँढ़ा मन ने,

हरि चरणों की रज को हँस कर,चंदन उसने स्वीकारा।

मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश