गीतिका - मधु शुक्ला

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कर्म  धरा  पर  संघर्षों  में, हार जीत चलती  रहती,

नहीं  ठहरती  जीवन धारा, वह आगे बढ़ती रहती।

जो सम रहता हर हालत में, धीरज से नाता रखता,

जीत उसी को सखा बनाती, हार सदा डरती रहती।

न्याय, नीति की जीत जगत में, प्रेम शांति के गीत लिखे,

पाँव झूठ के अधिक न टिकते, बात यही कहती रहती।

जीत सुनिश्चित हो शिक्षा की, कर्म धरा वह प्राप्त करे,

रोजगार  की  मायूसी  यह, माँग  सदा  रखती  रहती।

बाहुबली  की  जीत  देखकर, लोकतंत्र  विस्मित  होता,

अधिकारों की चिंता अक्सर,जन मन को डसती रहती।

--  मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश .