गीतिका - मधु शुक्ला
Thu, 23 Feb 2023
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प्रीति के प्यारे तराने मास फागुन साथ लाता,
श्रेष्ठ जग में प्रेम की अनुभूति यह ऋतुराज गाता।
लालसा कोमल हृदय की पल रही जब हर हृदय में,
सोचने की बात है यह स्वार्थ फिर कैसे रिझाता।
क्या मनुज की प्रेम वाली रिक्त झोली हो गई है,
वक्त, पैसा क्यों मनुज अब प्रीति पर्वों पर लुटाता।
ज्ञात सबको प्रेम से ज्यादा नहीं है कीमती कुछ,
क्यों नहीं फिर हर समय मनु तज अहम् को मुस्कराता।
सभ्यता,संस्कृति सभी की है भली यह बात सच है,
फिर मनुजता को पतन की ओर लेकर कौन जाता।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश