गीत - जसवीर सिंह हलधर
देश जले तब मौन रहे वो फिल्मों पर जी भर चिल्लाये।।
चौथे खम्बे के मालिक भी खुली बहस में दिखे पराये ।।
छूट गयी पीछे रोशनियां सन्नाटों में कोलाहल है ।
चैनल पे पसरा हंगामा मज़हब की देखो हलचल है ।
भाषा ने मर्यादा तोड़ी ,ऐसी होती बहस निगोड़ी ,
आपा खोएं मुल्ले पंडित जाति धर्म के धुंधले साये ।।
देश जले तब मौन रहे वो फिल्मों पर जी भर चिल्लाये ।।1
दांत सींग नाखूनों वाले खद्दर पहने दिखे शिकारी ।
चंदन की डालों पर मानो लिपटे जैसे नाग पुजारी ।
भाषण में कोरे आश्वासन , पाना है सबको सिंहासन ,
गौण हो गयी मर्यादाएं विषधर घूमें फन फैलाये ।।
देश जले तब मौन रहे वो फिल्मों पर जी भर चिल्लाये ।।2
चौड़ी चौड़ी सड़कों पर भी तीखी कांटेदार हवायें ।
दूषित हवा और पानी में सिर धुनती मीठी संध्याऐं।
बीमारी ठगनी सी नांचे , भरती देखी मौत कुलाचें ,
प्राण वायु की बहुत कमी है व्याकुल लोग दिखे मुरझाये ।।
देश जले तब मौन रहे वो फिल्मों पर जी भर चिल्लाये ।।3
कोई जिक्र नहीं होता है भूख गरीबी बीमारी का ।
कोई राग नहीं गाता है गांव गली की लाचारी का ।
हर मुद्दे पर राजनीति है ,सत्ता में ही छुपी प्रीत है ,
धर्म ध्वजा के वाहक बैठे जबड़ों में बारूद दबाये ।।
देश जले तब मौन रहें वो फिल्मों पर जी भर चिल्लाये ।।4
मेरे सपनों की गगरी तो फूट गयी है वहीं खेत में ।
नदिया मीठे पानी वाली डूब गयी है कहीं रेत में ।
खेती पर कानून मिला है ,मक्कारों का जिगर हिला है ,
शब्द हो गए मौन अर्थ में "हलधर" कैसे गीत सुनाये ।।
देश जले तब मौन रहे वो फिल्मों पर जी भर चिल्लये। ।5
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून