गीत - जसवीर सिंह हलधर

 | 
pic

रहता सदा भविष्य कोख में ,ये चिंता का मूल ।

वर्तमान में चुभन बढ़ाते , भूत काल के शूल ।।

दिनचर्या को बांधे रखते ,हैं अतीत के सूत ।

दिन दूना बढ़ते जाते ये , दिखें रात में भूत ।

जाने से पहले कर लेते ,अपना जुर्म कुबूल ।।

वर्तमान में चुभन बढ़ाते ,भूत काल के शूल ।।1

इक पल में आरंभ समाया ,दूजे पल में अंत ।

चाल समय की जान न पाए ,ज्ञानी ध्यानी संत ।

कभी खार सा दिखे नुकीला ,कभी दिखे ये फूल ।।

वर्तमान में चुभन बढ़ाते ,भूत काल के शूल ।।2

कभी कठिन है कभी सरल है ,ऐसी इसकी जात ।

सदा मनुज के साथ रहा है ,ज्यों दूल्हा बारात ।

बुरा समय आये तो भैया ,पड़े अक्ल पर धूल ।।

वर्तमान में चुभन बढ़ाते,भूत काल के शूल ।।3

चिंता चिता समान रही है ,समय निभाये साथ ।

छुटकारा दिलवाने में भी ,रहा इसी का हाथ  ।

समय सत्य है समय सनातन ,"हलधर " तथ्य न भूल ।।

वर्तमान में चुभन बढ़ाते ,भूत काल के शूल ।।4

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून