गीत - अनुराधा पाण्डेय

 | 
pic

तन बोलो ! अपनी साँसों को,कैसे क्षण भर भी बिसराता ?

अभियोगी मेरे अधरों पर केवल नाम तुम्हारा आता....

जग कहता मुझको अपराधी ,

अपना प्राण बचाती जब-जब ।

बुरा-भला कह कर हँस देता ,

उर के घाव दिखाती जब-जब ।

कौन जगत में सिवा तुम्हारे,जो मेरी पीड़ा पी जाता ।

अभियोगी मेरे अधरों पर,केवल नाम तुम्हारा आता ।

आ जाती क्यों जगती मग में,

यों मिथ्या अधिकार जताने ?

मेरे मन की सीमाओं पर ,

शब्द झार झंखाड़ लगाने ?

जग क्योँ मेरी निजता को ही,चींख-चींख कर दोष बताता ?

अभियोगी मेरे अधरों पर,केवल नाम तुम्हारा आता।

- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका , दिल्ली