मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह
Oct 21, 2024, 22:41 IST
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मुझे रस्मों रिवाजों के न बाँधों बंधनों में तुम।
तमन्ना है मेरी तारे फ़लक से तोड़ लाने की ।।
थकोगे तुम कहीं तो डालकर अपना मैं आंचल।
सुबह देकर "निशा" जैसी मैं ढ़लना चाहती हूं।।
नफ़रतों से न हासिल हुआ कुछ यहाँ
जीत लो प्यार से सारे संसार को
रात भर कल शमा जगमगाती रही।
मुझपे लाखों सितम पर वो ढ़ाती रही ।
नैंन सावन में जम के तो बरसे मगर,
आग फिर भी विरह की जलाती रही।
-डॉ. निशा सिंह 'नवल',लखनऊ, उत्तर प्रदेश