मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह

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ज़ीस्त में फैलने लगता है अँधेरा जब भी ।

हम उमीदों के दिये दिल में जला लेते हैं।।

हमें अपने ही भ्राताओं में प्रभु  श्रीराम  मिल जाते।

छिपे इन बाल गोपालों में ही घनश्याम  मिल जाते।।

अगर  हम बंद मन के चक्षुओं को खोल लेते  तो।

पिता-माता के चरणों में ही सारे धाम मिल जाते।।

तुम्हारी चाह में ख़ुद का ठिकाना भूल बैठी हूं।

मुझे अपनी निगाहों से "नवल" दिल का पता देना।।

हो  अँधेरा  घना  तो  सितारा बने।

डूबती  नाव  का हम  किनारा बने ।।

स्वर्ग जैसी धरा पल में हो जाएगी।

एक   दूजे का  आओ सहारा बने।।

- डॉ. निशा सिंह 'नवल', लखनऊ, उत्तर प्रदेश