मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह
Aug 25, 2024, 22:38 IST
| थकोगे तुम कहीं तो डालकर अपना मैं आंचल।
सुबह देकर "निशा" जैसी मैं ढ़लना चाहती हूं।।
रात भर कल शमा जगमगाती रही।
मुझपे लाखों सितम पर वो ढ़ाती रही ।
नैंन सावन में जम के तो बरसे मगर,
आग फिर भी विरह की जलाती रही।
सिर्फ सजदा-ए-ख़ुदा में हो ये सर ख़म यारों।
सामने हर किसी के इसको झुकाया न करो।।
-डॉ. निशा सिंह 'नवल' (लखनऊ)