मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह

 | 
pic

थकोगे तुम कहीं तो डालकर अपना मैं आंचल।

सुबह देकर "निशा" जैसी मैं ढ़लना चाहती हूं।।

रात  भर कल  शमा  जगमगाती  रही।

मुझपे लाखों सितम पर वो ढ़ाती रही ।

नैंन  सावन में जम के तो  बरसे मगर,

आग  फिर भी विरह की जलाती  रही।

सिर्फ सजदा-ए-ख़ुदा में हो ये सर ख़म यारों।

सामने हर किसी के इसको झुकाया न करो।।

-डॉ. निशा सिंह 'नवल' (लखनऊ)