मित्रता - भूपेन्द्र राघव
Jun 5, 2023, 23:11 IST
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इस धरा अंक में नित नित ही,
कुछ रिश्ते बनते रहते है।
कुछ शैल सदृश जम जाते हैं,
कुछ नीर से कल-कल बहते हैं।
पर रक्त के कुछ संबंधो पर,
अपना अपना अधिकार नहीं।
हों बंध भले ही सामाजिक,
लेकिन किंचित भी प्यार नहीं।
रक्त से हटकर भी निश्छल,
एक प्यारा रिश्ता होता है।
हर खुशी में ज्यादा हँसता है,
हर दुःख में ज्यादा रोता है।
ये रत्न उसी को मिलते हैं,
जिस पर हो कृपा ईश्वर की।
यदि मित्र न जीवन में हो तो,
समझो कि जिंदगी पत्थर की।
सचमुच मानव सौभाग्य है यह,
जीवन में सच्चे मित्र मिलें।
जीवन के कैनवास पर कुछ,
सतरंगी अनुपम चित्र खिलें।
कीमत आंकोगे मित्रों की,
बैकुंठ तुला में धर जाए।
वह अमर मित्रता होती है,
बिन कहे मित्रहित कर जाए।
- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा , उत्तर प्रदेश