रूप घनाक्षरी - मधु शुक्ला
Wed, 15 Mar 2023
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मन सागर क्यों प्यासा, रहा सदा संसार में,
जब सौंपा है ईश ने, हमें विवेक विशाल।
ऋषि, मुनि, ज्ञानी, ध्यानी, त्याग दिए परिवार,
तजा उन्हें न फिर भी, ममता का मायाजाल।
पूर्व नियोजित होता, है जब भाग्य सभी का,
फिर कैसे हो संभव, उज्ज्वल रखना भाल।
चाह त्याग के फल की, जो भी दायित्व निभाये,
शांत रहे मन सिंधु , हो हर प्यास निहाल।
- मधु शुक्ला., सतना , मध्यप्रदेश