उड़ता पंछी - सुनील गुप्ता

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मैं उड़ता पंछी

नील गगन का....,

भरूं परवाज़ ऊँची  !

नहीं राह है

कोई मेरी......,

डगर है मनचाही !!1!!

दूर क्षितिज के

पार जाकर....,

करता हूँ मैं मस्ती  !

अपनी मौज में

रहता हूँ......

जहां चाहूँ बसाऊं बस्ती !!2!!

खुले गगन में

उड़ता जाऊं....,

कहीं ना ठहरूँ मैं  !

अपनी मंज़िल का

हूँ राही......,

दिन रात उडूं यहां मैं !!3!!

सागर गहरा

ऊँचे पर्वत......,

गहरी मेरी आस  !

नील गगन का

हूँ मैं राही.....,

गहरा है विश्वास !!4!!

ये चांद तारे

सूरज सारे.....,

लगते मुझको प्यारे !

खेल खेल में

उड़ता जाऊं.....,

गीत सुनाऊँ न्यारे !!5!

- सुनील गुप्ता सुनीलानंद,

जयपुर, राजस्थान