श्रीराम के ‘राष्‍ट्र मंदिर’ से निकली ज्‍योति हर घर को करेगी आलोकित - हितानंद

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vivratidarpan.com - पांच शताब्दि‍यों से अधिक की प्रतीक्षा पूर्ण होने का ‘अभि‍जीत मुहूर्त’ अब आ ही गया है। श्रीराम जन्‍मभूमि के भव्‍य मंदिर में रामलला के विराजमान होने का ऐतिहासिक शुभ अवसर पूरे राष्‍ट्र को आनंदित और आल्‍हादित कर रहा है। एक जीवंत,  सक्रिय, धा‍र्मिक और ध्‍ययेनिष्‍ठ समाज की तपस्‍या पूर्ण हो रही है। हर मन में श्रीराम नाम की ज्‍योति का पावन प्रकाश होने जा रहा है। इसीलिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रत्‍येक परिवार से अपने-अपने घरों में ‘राम ज्‍योति’ जलाने का आह्वान किया है। मंदिर के शिलान्‍यास के अवसर पर 5 अगस्‍त 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने उद्बोधन में कहा था कि – ‘अयोध्‍या में बनने वाला भव्‍य राम मंदिर भारतीय संस्‍कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा। म‍ंदिर निर्माण की प्रक्रिया संपूर्ण देश को जोड़ने का उपक्रम बनेगी।’ वास्‍तव में आज का उत्‍साहजनक और राममय वातावरण  देख कर यह विश्‍वास और मजबूत होता है कि यह अयोध्‍या में भगवान श्रीराम का मंदिर होने के साथ-साथ  यह ‘राष्‍ट्र मंदिर’ भी है। ‘राष्‍ट्र मंदिर’ से निकली यह परम पावन प्रेरणा घर-घर में ‘राम ज्‍योति’ के रूप में शुभता, शुचिता, सकारात्‍मकता, शांति, समृद्धि, शक्ति और शौर्य का प्रकाश लाएगी।

श्रीराम जन्‍मभूमि पर भव्‍य मंदिर में भगवान श्रीराम की प्राण-प्रतिष्‍ठा के लिए रामभक्‍तों को अक्षत वितरण करने पिछले दिनों जब कार्यकर्ताओं के साथ घर-घर पहुंचना हुआ तो रामभक्‍तों का उत्‍साह और श्रद्धा देख मन हर्ष से भर गया। ‘राष्‍ट्रमंदिर’ में रामलला के विराजने का उत्‍साह और आस्‍था संपूर्ण देश में अपने शिखर पर है। प्रत्‍येक भारतवासी अपने मन में बसे राम को पुन: जन्‍मभूमि स्थित मंदिर में विराजते देखने को आतुर है। यह ऐतिहासिक अवसर है। इतिहास ने करवट ले ली है। विश्‍व एक नए भारत का अभ्‍युदय होते देख रहा है। हम सब साक्षी हैं कि कैसे भारत की पताका पूरे मान और सम्‍मान के साथ विश्‍व में फहरा रही है। समाज ने अपने लक्ष्‍य केंद्रित एकनिष्‍ठता,  विचार, समर्पण, कार्य और साहस के बल पर जो कर दिखाया है, वह अद्भुत ही है। क्‍या यह सब इतना सरल था?  इस प्रश्‍न का उत्‍तर भी हम सभी जानते हैं परंतु इस समय का ही सौभाग्‍य है कि भारतवासी अपनी अनथक, अविरत साधना से राष्‍ट्र को ऐसी प्रतिष्‍ठा पर आरूढ़ होते देख रहे हैं।

अयोध्‍या में श्रीराम मंदिर का विषय राष्‍ट्र और समाज के ‘स्‍व’ के जागरण से जुड़ा हुआ है।  भारत के ‘स्‍व‘ का जागरण हो चुका है। श्रीराम जन्‍मभूमि आंदोलन का एक समय था जब कार्यकर्ताओं के मुख से गीत गूंजता था  ‘कोटि-कोटि हिन्‍दू जन का हम ज्‍वार उठा कर मानेंगे, सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे।‘ तब परिस्थियां पूरी तरह से प्रतिकूल थीं। ऐसे लोग भी बड़ी संख्‍या में थे जो इस गीत को सुनकर सहज विश्‍वास नहीं करते थे कि कभी ऐसा हो सकेगा। ऐसे लोग मानने को तैयार नहीं थे कि कभी समाज का जागरण होगा और पावन जन्‍मभूमि पर भगवान श्रीराम के भव्‍य मंदिर का निर्माण होगा और उसमें हमारे आराध्‍य विराजेंगे। हम जब पुन: अखंड भारत का संकल्‍प करते हैं तो यहूदी समाज के संघर्ष की ऐतिहासिक गाथा ध्‍यान में आती है कि कैसे यूहूदियों ने दो हजार साल के अनथक संघर्ष, दृढ़ निश्‍चय और समवेत प्रयासों से येरुसलम को पुन: प्राप्‍त कर लिया। विश्‍व इतिहास में अब ऐसा ही उदाहरण हिन्‍दू समाज का दिया जाएगा कि कैसे 500 वर्षों के संघर्ष, दृढ़ता, साहस, निश्‍चय और सं‍गठित प्रयासों से एक समाज ने अपने आराध्‍य लोकनायक प्रभु श्रीराम की जन्‍मभूमि को पुन: प्राप्‍त किया। एक हजार साल के झंझावातों, विेदेशी आक्रांता लुटेरों को खदेड़कर एक समाज ने अपने खोए हुए ‘स्‍व‘ को जगाकर फि‍र राष्‍ट्र की गरिमा को प्राप्‍त किया। 

वास्‍तव में रामजन्‍मभूमि आंदोलन एक धार्मिक आंदोलन तो रहा ही, यह राष्‍ट्रीय आंदोलन बन गया। यह सदियों से दमित समाज के ‘स्‍वबोध’ के पुन: उठ खड़े होने के संघर्ष की कथा भी है। भारतवर्ष पर आक्रमण तो 7वीं सदी से ही प्रारंभ हो गए थे। विदेशी लुटेरे आक्रमणकारियों ने जब षड्यंत्रों और दुष्‍चक्रों से देश की सत्‍ता पर कब्‍जा कर लिया तो सबसे पहले उन्‍होंने राष्‍ट्र और समाज के ‘स्‍व’ को नष्‍ट करने का षड्यंत्र शुरू किया। लुटेरों ने राष्‍ट्र की अस्मिता को नुकसान पहुंचाने के इरादे से काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्‍या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्‍या कर मूर्तियों को तोड़ने का दुष्‍चक्र जारी रखा, लेकिन 14वीं सदी तक आक्रमणकारी लुटेरे अयोध्‍या में श्रीराम मंदिर को नुकसान नहीं पहुंचा पाए और विभिन्‍न आक्रमणों को झेलते हुए श्रीराम जन्‍मभूमि पर बना भव्‍य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। 14वीं शताब्दी में दिल्ली पर मुगलों का अधिकार हो जाने के बाद से ही श्रीराम जन्‍मभूमि एवं अयोध्‍या को नष्‍ट करने आक्रमण किए जाने लगे। जब मंदिर पर सीधा आक्रमण हुआ तब मंदिर में सिद्ध महात्‍मा श्री श्‍यामनंद जी महाराज रहते थे। उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्रीनारायण ने मंदिर को बचाने के लिए बाबर की सेना से युद्ध किया। कई दिनों तक चले इस युद्ध में हजारों वीर सैनिक श्रीराम मंदिर की रक्षा करते हुए बलिदान हो गए। ब्रिटिश इतिहासकार कनिंघम ने ‘लखनऊ गजेटियर’ के 66वें अंक में लिखा है कि ‘1 लाख 74 हजार हिन्‍दुओं की लाशें गिर जाने के बाद ही मीर बकी मंदिर ध्‍वस्‍त करने के अपने अभियान में सफल हो सका।‘ इसके बाद श्रीराम जन्‍मभूमि को मुक्‍त कराने के लिए हिन्‍दू समाज ने अनगिनत संघर्ष किए। भारत का शासन अंग्रेजों के हाथों में चले जाने पर भी हिन्‍दू समाज के स्‍व को दमित ही किया जाता रहा। स्‍वतंत्रता के बाद भी 70 साल लग गए किन्‍तु ‘स्‍व’ का जागरण होकर ही रहा। कोटि-कोटि हिन्‍दू जन का ज्‍वार उठा तो ऐसे सुफल लेकर आया कि आज भारत विश्‍व गुरु बनने के मार्ग पर है। राष्‍ट्र की स्‍वीकार्यता और मान पूरे विश्‍व में ऐतिहासिक रूप से बढ़ा है। राष्‍ट्र मंदिर ने आकार ले लिया है, भगवान श्रीराम अपनी जन्‍मभूमि पर भव्‍य मंदिर में विराज रहे हैं। भारत  मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मार्ग पर चलकर पूरे विश्‍व की मानवता को आलोकित करने वाली राम ज्‍योति जला चुका है। (विनायक फीचर्स) (लेखक भारतीय जनता पार्टी मध्‍यप्रदेश के प्रदेश संगठन महामंत्री हैं)