पांच दिन दस दिन - राजेश कुमार झा
पांच दिन दस दिन बीस दिन पच्चीस दिन,
बीत गया पूरा एक साल का बारा महीना।
कभी धूप कभी छांव कभी खुशी कभी गम के साथ,
एक एक करके गुजरा है कैसे साल कहो ना।
वही लोग वही रिश्ते नाते कुछ अपने कुछ पराए,
वही सुबह वही शाम वही जिंदगी के रोज मर्रा के काम।
जैसे जैसे महीने और साल बदल रहे है ना,
वैसे ही लोग और लोगो की सोच बदली है ना ।
साल दर साल बदले है और आगे भी बदलते रहेंगे,
हम रहे ना रहे पर हमारा आपसी अपनापन कभी बदले ना
पांच दिन दस दिन बीस दिन पच्चीस दिन।
बीता गया एक साल का पूरा बारा महीना।।
बदलना है तो सोच को बदलो कि हमसे कोई दुखी हो ना,
हम सब है यहां रंगमंच की कठपुतलियां दोस्तो ।
जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है ना,
हर साल नए नए साल आयेंगे और जायेंगे।।
क्यों हम किसी को दुखी करके जीए यारो,
आओ कुछ ऐसा कर जाए आने वाले नए सालो मे।
कि हम कही भी रहे दोस्तो दुनिया हमे याद करती रहे ना।
बीता गया एक साल का पूरा बारा महीना।।
- राजेश कुमार झा, बिना , मध्य प्रदेश