किसान - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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खेत में करता काम किसान

बिना देखे वह साँझ-विहान

धरा पर छोड़े पैर निशान

सँभाले खेत और खलिहान।1

नित्य उठता जब होती भोर

थाम कर निज बैलों की डोर

निकल पड़ता खेतों की ओर

सतत श्रम करे लगा कर जोर।2

लगे वह साधारण इंसान

मगर पूजे मन से भगवान

कर्म का छेड़े वह अभियान

कभी भी करे नहीं अभिमान।3

प्रकृति की प्यारी लगती गोद

वहीं करता आमोद-प्रमोद

उगाता फसलें धरती खोद

इसी में मिलता उसे विनोद।4

भले थक कर हो जाये चूर

करे श्रम वह नित बादस्तूर

फसल करती उसके दुख दूर

खुशी पाता तब वह भरपूर।5

भले दिखता रहता बेहाल

चमकता स्वेद कृषक के भाल

देश को करता वह खुशहाल

बजाता कभी नहीं वह गाल।6

करें हम सब उसका सम्मान

गढ़े जो नित्य नये प्रतिमान,

उगा वह अन्न बचाता जान

करें दिल से उसका गुणगान।7

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

नोएडा, उत्तर प्रदेश