आंखें - प्रतिभा जैन

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ये आंखें तुमसे प्यार कर बैठी,

न जाने क्यों गंगा बन बैठी।

बिना जाने ही तुम पर,

एतबार कर बैठी।

तुमने मुड कर भी नही देखा,

फिर भी ना जाने क्यों इंतज़ार कर बैठी।

तन्हा राहों में अपना घर बना बैठी,

ये आंखें अपने दिल में पूरी क़िताब लिख बैठी।

- प्रतिभा जैन, टीकमगढ़, मध्य प्रदेश