सबके तरदी - अनिरुद्ध कुमार

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जब हीं मन में सपना चटकी,

फुरती तनमें नयना मटकी।

मनवा सहकी रुनकी झुनकी,

तुनका तुनकी तिरछी कनखी।

तड़की भड़की दुनिया ललची,

चमकी दमकी गमकी जिनगी।

लहरी फहरी लहकी सनकी,

बतिया सुनगी सुनते दहकी।

चटकी खटकी मन में लटकी,

लटका झटका सबके अटकी।

नयना तरसी टपदे बरसी,

करनी धरनी तनकी मन की।

छलकी गगरी रस से भरदी,

लहरी धमकी सबके तर दी।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड