दुमदार दोहे - अनिरुद्ध कुमार

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सिंदूरी धरती सजल, चुनरी बूटीदार।

डाढ़ पात नव रंग में, बासंती उपहार।

ऋतुराज बड़ी दिलदार।१।

प्रेम प्रीत सौगात से, जीवन बा गुलजार।

ढ़ोल मजीरा झालले, हर कोई तइयार।

होलीके बा त्योहार।२।

 

नर नारी बनठन खड़ा, चेहरा पर निखार।

जाके मन जहवाँ जुड़े, गलबहियाँ के हार।।

महिमा बा अपरंपार।३।

चुनरी पगड़ी साथ में, फागुन लहरादार।

ढ़ोलक बाजे ताल में, झाल भरें हुंकार।

फागुनके रंग हजार।४।

रंगरसिया उफान पर, गारी लच्छेदार।।

साली सरहज संग में, जीजा जी लाचार।।

जोगीरा से सतकार।५।

रंगरूट लागे सबे, पिचकारी के धार।

सब केहू मदहोश बा, रंग बिरंगा यार।

चोना जीवन के धार।६।

मदमातल उदबेग में, कण-कण बा गुलनार।

पुरवा पछिया ताल में, खुशी रहें संसार।।

होली के जयजयकार।७।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड