चिठ्ठी आई गाँव से - डॉo सत्यवान सौरभ

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चिठ्ठी आई गाँव से, ले यादों के फूल।

अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल।।

सिसक रही हैं चिट्ठियां, छुप-छुपकर साहेब।

जब से चैटिंग ने भरा, मन में झूठ फ़रेब।।

चिठ्ठी-पत्री-डाकिया, बीते कल की बात।

अब कोने में हो रही, चैटिंग से मुलाक़ात।।

ना चिठ्ठी सन्देश है,  ना आने की आस।

इंटरनेट के दौर में, रिश्ते हुए खटास।। 

सूनी गलियाँ पूछतीं, पूछ रही चौपाल।

कहाँ गया वो डाकिया, पूछे जिससे हाल।।

चिठ्ठी लाई गाँव से, जब राखी उपहार।

आँसूं छलके आँख से, देख बहन का प्यार।।

ऑनलाइन ही आजकल, सपने भरे उड़ान।

कहाँ बची वो चिट्ठियां, जिनमें धड़कन जान।।

ना चिठ्ठी संदेश कुछ, गए महीनों बीत।

चैटिंग के संग्राम में, घायल सौरभ प्रीत।।

अब ना आयेंगे कभी, चिट्ठी में सन्देश।

बचे कबूतर है कहाँ, आज देश परदेश।।

-डॉo  सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045