मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक
Fri, 3 Mar 2023
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बन कुम्हार कच्ची मिट्टी को देता नव आकार,
कभी इधर से कभी उधर से देकर मीठी थाप,
सौ सौ रूप गढ़ा करता है ऐसा सिरजन हार,
गुरुवर के चरणों में मेरा बारंबार प्रणाम।
एक तुम्हारा होना , मुझमें प्राण प्राण भर जाता है,
मन वीणा बन जाता है संगीत स्वरों में बहता है,
तन सरसा मन सरसा देवालय सा हो जाता है,
एक तुम्हारा होना मुझमें प्राण प्राण भर जाता है।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड